आरबीआई 3-5 दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में फिर से रेपो रेट में 0.25% कटौती कर सकता है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के 70 अर्थशास्त्रियों के पोल में ये अनुमान जताया गया है। हालांकि, ये भी कहा है कि इससे अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा असर नहीं होगा। इस बार रेपो रेट घटा तो यह लगातार छठी बार होगा। 20 साल में रेपो रेट घटाने का ये सबसे लंबा दौर भी होगा। ब्याज दरों का जो फ्रेमवर्क अभी है, वह 20 साल पहले ही शुरू किया गया था।
रेपो रेट घटने पर इससे जुड़े कर्ज तुरंत सस्ते होते हैं
रेपो रेट वह दर है जिस पर बैंकों को आरबीआई से कर्ज मिलता है। इसमें कमी आने से बैंकों पर भी लोन सस्ता करने का दवाब बढ़ता है। आरबीआई के निर्देशानुसार बैंक कर्ज की ब्याज दरों को रेपो रेट से जोड़ चुके हैं, ताकि आरबीआई रेट घटाए तो ग्राहकों को तुरंत फायदा मिले। हालांकि, बैंकों ने एमसीएलआर आधारित ब्याज दरों की व्यवस्था भी बनाए रखी है। रेपो रेट घटने से जमा पर ब्याज भी घटेगा।
आरबीआई इस साल रेपो रेट में 1.35% कटौती कर चुका है, मौजूदा दर 5.15% है। उधर जीडीपी ग्रोथ अप्रैल-जून तिमाही में सिर्फ 5% रह गई। यह 2013 के बाद सबसे कम है। रॉयटर्स के पोल के मुताबिक जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ सिर्फ 4.7% रहने का अनुमान है, आर्थिक सुस्ती खत्म होने में कम से कम छह महीने और लगेंगे।