21 साल पहले अप्रैल 1998 में सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली, तब भी पार्टी की सियासी हालत कमजोर थी। मई 1991 में देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या होने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कर दी, परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और कभी भी राजनीति में नहीं आने की कसम खाई थी। सोनिया ने राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना के साथ खुद राजनीति से दूर रखने की कोशिश की।
कांग्रेस की हालत दिन-ब-दिन बुरी होती देख सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेताओं के दबाव में 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की। जिसके बाद अप्रैल 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। इस तरह नेहरू-गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के रूप में सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली तथा ज़मीनी स्तर पर मेहनत करके साल 2004 और 2009 में केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व में यूपीए गठबंधन की सरकार बनाई। यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, वन अधिकार, भोजन का अधिकार और उचित मुआवजे और पुनर्वास का अधिकार संबंधित कानून सरकार ने बनाए।
राजीव गाँधी का एक इंटरव्यू है जिसमें वे कहते है कि सोनिया को भाषण देना या पब्लिक मे बोलना नही आता - वह भीड़ से डरती है ,एक बार कुछ बोलने के लिये कहा गया तो केवल जय हिंद बोलकर आ गई । राजीव जी ये देखने के लिये जीवित नही रहे कि सामने वाला व्यक्ति कितना बदल गया या वे जीवित होते तो वे शायद नही बदलती। सोनिया होना कठिन है या ये कहे कि परिस्थितियों से लड़ने के लिये लोग इतना बदल जाते है कि स्वयं को भी न पहचान पाये। भविष्य नियति लिखती है मनुष्य तो खिलौना है।
लोग उनकी हिंदी पर हँसते रहे पर सोनिया काम करती रही और विश्व की सबसे ताक़तवर राजनीतिक महिलाओ मे एक बनी । क्या वे ये बनना चाहती थी ? शायद नही क्योंकि उन्होंने राजीव गांधी से इसलिए विवाह नहीं किया था कि उन्हें देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का मुखिया होकर भारत के भाग्य का विधाता बनना है ? असल में वे तो राजनीति की एबीसीडी भी नहीं जानती थी।
आज सोनिया गांधी का जन्मदिन है। उनका जीवन प्रेरणा है या विडम्बना, यह तो उनमें निष्ठा रखने वाले और उनका विरोध करने वालों पर निर्भर है, लेकिन हर परिस्थिति में डटे रहना कोई उनसे सीखे।